तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने पिछले महीने 24 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाया था.
राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पिछले 72 सालों से कश्मीर समस्या का समाधान खोजने में नाकाम रहा है.
अर्दोआन ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर समस्या को बातचीत के ज़रिए सुलझाएं. तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद कश्मीर में 80 लाख लोग फँसे हुए हैं.
अर्दोआन के अलावा मलेशिया ने भी यूएन की आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया था. कहा जा रहा है कि यूएन की आम सभा में तुर्की और मलेशिया का यह रुख़ भारत के लिए झटका है.
तुर्की के इस रुख़ पर भारत ने खेद जताया है. इसी हफ़्ते शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है. उन्होंने कहा कि तुर्की और मलेशिया का रुख़ बहुत ही अफ़सोसजनक है.
रवीश कुमार ने कहा, ''भारत और तुर्की में दोस्ताना संबंध हैं. लेकिन छह अगस्त के बाद से हमें खेद है कि तुर्की की तरफ़ से भारत के आंतरिक मामले पर लगातार बयान आए हैं. ये तथ्यात्मक रूप से ग़लत और पक्षपातपूर्ण हैं.''
पाकिस्तान और तुर्की के बीच संबंध भारत के तुलना में काफ़ी अच्छे रहे हैं. दोनों मुल्क इस्लामिक दुनिया के सुन्नी प्रभुत्व वाले हैं. अर्दोआन के पाकिस्तान से हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं.
जब जुलाई 2016 में तुर्की में सेना का अर्दोआन के ख़िलाफ़ तख्तापलट नाकाम रहा तो पाकिस्तान खुलकर अर्दोआन के पक्ष में आया था. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अर्दोआन को फ़ोन कर समर्थन किया था. इसके बाद शरीफ़ ने तुर्की का दौरा भी किया था. तब से अर्दोआन और पाकिस्तान के संबंध और अच्छे हुए हैं.
सियासी और आर्थिक संबंध
2017 से तुर्की ने पाकिस्तान में एक अरब डॉलर का निवेश किया है. तुर्की पाकिस्तान में कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है. वो पाकिस्तान को मेट्रोबस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम भी मुहैया कराता रहा है. दोनों देशों के बीच प्रस्तावित फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर अब भी काम चल रहा है.
अगर दोनों देशों के बीच यह समझौता हो जाता है कि तो द्विपक्षीय व्यापार 90.0 करोड़ डॉलर से बढ़कर 10 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है.
पाकिस्तान में टर्किश एयरलाइंस का भी काफ़ी विस्तार हुआ है. इस्तांबुल रीजनल एविएशन हब के तौर पर विकसित हुआ है. ज़्यादातर पाकिस्तानी तुर्की के रास्ते पश्चिम के देशों में जाते हैं.
हालांकि पाकिस्तानियों को तुर्की में जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत पड़ती है. अगर फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट हो जाता है तो दोनों देशों के बीच संबंध और गहरे होंगे. तुर्की में हाल के वर्षों में पश्चिम और यूरोप के पर्यटकों का आना कम हुआ है ऐसे में तुर्की इस्लामिक देशों के पर्यटकों को आकर्षित करना चाहता है.
पाकिस्तान के लिए तुर्की लंबे समय से आर्थिक और सियासी मॉडल के रूप में रहा है. लेकिन वक़्त के साथ चीज़ें काफ़ी बदल गई हैं. पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल पाशा के प्रशंसक रहे हैं.
मुशर्रफ़ पाशा के सेक्युलर सुधारों और सख़्त शासन की प्रशंसा करते रहे हैं. पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अर्दोआन की प्रशंसा करते रहे हैं.
2016 में तुर्की में तख़्तापलट नाकाम करने पर इमरान ख़ान ने अर्दोआन को नायक कहा था. ज़ाहिर है इमरान ख़ान भी नहीं चाहते हैं कि पाकिस्तान में राजनीतिक सरकार के ख़िलाफ़ सेना का तख्तापलट हो, जिसकी आशंका पाकिस्तान में हमेशा बनी रहती है.